वो रुलाकर हंस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भुलाना चाहा अगर उसको कभी
और भी वो याद आया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गुन गुनता जा रहा था एक फकीर
धूप रहती है न साया देर तक॥
तुम नहीं गम नहीं शराब नहीं
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं
गाहे गाहे इस पढ़ा कीजे
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
जाने किस किस की मौत आई है
आज रुख पर कोई नकाब नहीं
वो करम उँगलियों पे गिनते हैं
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं॥
पहले तुम वक़्त के माथे की लकीरों से मिलो
जाओ फुटपाथ के बिखरे हुए हीरों से मिलो
इशरते हुस्न में मसरूफ तो रहते हो मगर
वक़्त मिल जाए तो हम जैसे फकीरों से मिलो॥
रोज़ एक खाब खरीदा है किसी मंज़र से
रोज़ टूटा हूँ बहुत दूर कहीं अन्दर से
नए मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं
मुख्तलिफ (अलग ) मैं ही हूँ अब भी ज़माने भर से॥
शायरों के नाम
???
wo rulaakar haNs na paayaa der tak........nawaaz deobandi saahab kaa kalaam hai
ReplyDeleteIt is written by Dr Nawaz Deobandi
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