अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दुआर में हम
हर कलमकार की बेनाम खबर के हम हैं॥
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शायर
निदा फाजली साहब
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