Sensible Cinema
Saturday, August 7, 2010
नशा पूरे शबाब पर है
ये शाम भी रंगीन है, ये मौसम भी हसीन है
समां है बहका बहका होश में हम भी नहीं हैं
न साकी है न पैमाना है, फिर भी नशा पूरे शबाब पर है
ये खुमारी जाये भी तो जाये कैसे, तुमने आँखों से जो पिला रक्खी है॥
भावना के
"दिल की कलम से "
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