Sunday, August 8, 2010

आज़ादी दिवस पर पिता जी की कलम से

आता है हर साल दिवस यह आज़ादी का

करता कई सवाल दिवस यह आज़ादी का

देशभक्ति के कैसेट आज बजेंगे जमकर

खद्दर धारी नेता देंगे भाषद(स्पीच ) डटकर

वही परेडें वही सलामी होंगी कसकर

अगले दिन आएँगी ये सब खबरें बनकर

कर्मकांड बन गया दिवस क्यूँ आज़ादी का

करता कई सवाल दिवस ये आज़ादी का ...............



क्या थे सपने बिरसा तात्या भगत सिंह के

होकर के आज़ाद कहाँ पर अब हम पहुचे

कहाँ हो गयी चूक कहाँ पर हम है भटके

कौन नचाता हमें आज भी देता झटके

क्या है आलम भूख गरीबी बीमारी का

करता कई सवाल दिवस यह आज़ादी का ................

(१८५७ की क्रांति तो हमें याद है पर उससे भी पहले देश को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराने के लिए बिरसा मुंडा, कान्हू जैसे वीर आदिवासियों ने भी क्रान्ति की थी और कहा था की जंगल और ज़मीन पर अधिकार लोगों का होना चाहिए शायद उनकी शहादाद कम ही लोगों को पता होगी इसलिए ज़िक्र किया है पिता जी ने उनका क्यूंकि किताबों में भी जियादा ज़िक्र नहीं मिलता उनका और एक और पंक्ती है-- "कौन नचाता हमें आज भी देता झटके "से आशय उस बाज़ार से है, उन देशों से है जो उदारीकरण के नाम पर हमें तरह तरह के झटके देते रहते हैं जैसे विदेशी पूंजी का खुदरा बाज़ार में प्रत्यक्ष निवेश। ज़रा सोचिये अगर ऐसा हुआ तो कितने व्यापारियों और किसानो का क्या होगा दुकानों और हाट का अस्तित्व ही मिट जाएगा नज़र आयेंगे तो सिर्फ बड़ी बड़ी कंपनियों के माल। )



रीति नीति अब भी क्यूँ है अंग्रेजों वाली

पुलिस आज भी धनिकों की करती रखवाली

एम् एल ऐ , सांसद बने क्यूँ गुंडे मवाली

बहस न चलती संसद में बस मुक्के गाली

कब होगा उपहास बंद यह आज़ादी का

करता कई सवाल दिवस यह आज़ादी का॥

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पिता अजय पाठक जी की
"दिल की कलम से "

2 comments:

  1. bahut khoob....shukriya Bhavna...sahi samay par yean par prastut karne ka...
    lagta hai ab na vo neta hain aur na hi logon ka vyaktitva....

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  2. waqayi aisa lagta hai jaise aazaadi milne ke baad to 15 august sirf rasm adayegi ke liye manaaya jaata ho aur ab azaadi ke baad mano hamaare samne koi chunauti hi na rah gayi ho isliye ham itne thande ho gaye hain ki koi farq hi nahi padta ham par.

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