Sunday, August 8, 2010

हर घडी खुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा

हर घडी खुद से उलझना है मुक्क़दर मेरा
मै ही कश्ती हूँ मुझमें है समंदर मेरा
मुद्दतों बीत गयी खाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा॥
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शायर
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