हर घडी खुद से उलझना है मुक्क़दर मेरा
मै ही कश्ती हूँ मुझमें है समंदर मेरा
मुद्दतों बीत गयी खाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा॥
..............................................................
..............................................................
शायर
???
bahut achchha, badhai
ReplyDeleteachhi zameen hai , bahoot kuch kahaa jaa shaktaa hai par
ReplyDelete