Thursday, August 5, 2010

हर दर्द की यारों मैं दवा लेके चला हूँ

अपने शहर की ताज़ा हवा लेके चला हूँ
हर दर्द की यारों मैं दवा लेके चला हूँ
मुझको यकीं है की रहूँगा मैं कामयाब
क्यूंकि मैं घर से माँ की दुआ लेके चला हूँ॥


चाक है जिगर फिर भी , आये हैं रफू करके
जायेंगे हकीक़त से तुझको रूबरू करके
प्यार की बड़ी इससे और मिसाल क्या होगी
हम नमाज़ पढ़ते हैं गंगा में वजू करके ॥

दोनों शेर
इमरान प्रतापगढ़ी के हैं

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