इंदौर में हर साल एक बड़ा मुशायरा होता है "जश्न जारी" जिसमें देश विदेश से जाने माने शायर आते हैं और इस बार इसमें सम्मानित किया गया था जावेद साहब को । उसी जश्न जारी में दुबई से एक शायर आये थे जुबैद फारूक उनकी एक नज़्म पेश कर रही हूँ आपके सामने --
पारा पारा है जिस्म जान मेरे
मुझको मिलते नहीं निशा मेरे
दर्द दिल से कहीं नहीं जाते
अश्क आँखों से हैं रवां मेरे
गैर की अब करून मै क्या चाहत
जो हैं मेरे वो हैं कहाँ मेरे ॥
(इसको फारूक साहब ने तरन्नुम में सुनाया था )