ये बूंदें मुझे बच्चा बनाती हैं
ना जाने कितने यादें ताज़ा कर जाती हैं
वो कागज़ की नाव पानी में तैराना
उसके डूब जाने पे जोर जोर चिल्लाना
कॉपी के पन्नो से फिर से नाव बनाना
वो नन्हे नन्हे पैरों से पानी की गहराई नापना
ऐसा करते देख किसी बड़े का चिल्लाना
पानी गहरा है बेटा आगे ना जाना
ज़रा सी सर्दी ज़ुकाम पे माँ का रात रात भर जागना
वो माँ की डांट खाना मगर फिर भी न मानना
माँ की मार, दादी का दुलार, वो माँ से उनका कहना
"खेले देओ बहु, मारा न करो अच्छा"
दादी की शह पाके फिर से धमाचौकड़ी मचाना
क्लास बंक करके बारिश में नहाना
माँ से बहाने बनाना
बस छूट गयी थी माँ
ये बूंदें-
बचपन, स्कूल, दोस्त सबकी पिक्चर खीच जाती हैं
ये खुद तो नहीं बदलीं
मगर ज़िन्दगी में कितना कुछ बदल जाती हैं
ये बूंदें मुझे बच्चा बनाती हैं
ना जाने कितनी यादें ताज़ा कर जाती हैं
भावना के
" दिल की कलम से "
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