वो बोलते न थे जियादा
हम भी डरते थे उनसे
हमारे लिए काफी था उनका एक ही इशारा
कहीं जाना हो, कुछ करना हो
नहीं कह पाते थे खुद से
ऐसे में माँ ही
होती थी एक सहारा
हमारे लिए काफी था उनका एक ही इशारा
उनकी एक ही आवाज़ में उठ जाते थे हम
उनके डांटने से पहले ही आँखें हो जाती थी नम
ठोंक ठोंक कुम्हार सा
उन्होंने हमें है सवारा
हमारे लिए काफी था उनका एक ही इशारा
नासमझी में उनको पत्थर दिल समझते थे
ये न करो, वो न करो , हिटलर हम कहते थे
बड़े होके जाना
सोचना गलत था हमारा
हमारे लिए काफी था उनका एक ही इशारा
भावना के
" दिल की कलम से "
पिता के नाम पाती
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