Wednesday, July 28, 2010

बाद मुद्दत के हाँ मिल रहे हैं हम

अगर आप सालों साल बाद अपने किसी पुराने मित्र से मिलो तो उसका दिल आपको पहले जैसा ही मिलेगा। उससे मिलके वही पुरानी बातें करोगे जो वक़्त आपने साथ गुज़ारे थे एक दूसरे के। वो वक़्त भले ही दोबारा न आ सके फिर पर उसकी यादें आप दोनों के ज़ेहन में वैसी की वैसी ही होंगी पर जिस्मानी तौर पे कितनी तब्दीलियाँ आ जाती हैं, नज़र कमज़ोर हो जाती है, आवाज़ में कम्पन, चेहरे पे वक़्त की दी हुयी झुरियां और न जाने क्या कुछ लेकिन फिर भी अपने पुराने साथी से मिलने का वो जोश ठंडा नहीं पड़ता । पुरानी यादें किताब के पन्नों की मानिंद एक के बाद एक कर खुलती चली जाती हैं और शायद मिलन का वो पल हमारी ज़िन्दगी के चंद खूबसूरत लम्हों में शुमार हो जाता है। उन लम्हों के एहसास को ही संजोने और शब्दों में पिरोने की कोशिश की है मेरे पिता अजय पाठक जी ने जिसे मैं आपके सामने रख रही हूँ ---

बाद मुद्दत के हाँ मिले हैं हम

दूर नज़रों से हाँ रहे हैं हम

क्या हुआ जो दूरियां दुश्वारियां थी

आज लो पास फिर खड़े हैं हाम

जानता हूँ समय न लौटा कभी

सीढियां( उम्र की ) कितनी चढ़ चुके हैं हम

बदलें हैं जिस्म कितने दोनों के

देख आईना हंस रहे हैं हम

आ गया वक़्त फिर जुदा होंगे

जाओ तुम भी की जा रहे हैं हम

है बड़ी पूँजी चंद ये लम्हे

रौशनी इनसे पा रहे हैं हम।

पिता अजय पाठक के

"दिल की कलम से "

8 comments:

  1. सच के समान्तर - मार्मिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. aapke lafz to hain hee,unke parshva me jo irade hain ve bhee dilchasp hain.

    ReplyDelete
  3. aap sabhi ne ise padha aapka shukriya aur usse bhi ziyada shukr guzaar main is baat ke liye hun ki iski garmaahat aap tak pahunchi warna rishte naate dheere dheere is kadar thande hote jaa rahe hain ki poochho mat

    ReplyDelete
  4. हा हा हा
    और आपकी इतनी अच्छी कविता पढ़ के टिप्पणी कर रहे हैं हम. :-)

    ReplyDelete
  5. इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete