Wednesday, July 28, 2010

चुटकी लेने का भी अपना मज़ा है

हम भारतीय बहुत ही भावनात्मक होते हैं और फिल्म बनाने वाले ये बात बहुत अच्छे से जानते है यही वजह है की वो फिल्मों में हमें भावुक करने के लिए "इमोशंस " का प्रयोग करते ही करते हैं और सच पूछिए तो मैं भी अपने नाम के ही मुताबिक़ हूँ "भावना" बहुत ही "इमोशनल"। कुछ अच्छा हो तो भी आंसू छलक आते है और कुछ बुरा हो तो भी। मेरी ज़यादातर रचनाएँ आपको भावनात्मक ही मिलेंगी व्यंगात्मक बहुत ही कम लिख पाती हूँ ये बड़ी कमजोरी है मेरी जो आपके सामने उजागर कर रही हूँ क्यूंकि अब जब दोस्ती की है आपसे तो फिर आपसे क्या छुपाना। पिता जी ने आज के मज्नुयों पर चुटकी ली है जो मुझे बड़ी अच्छी लगी तो सोचा आपसे भी शेयर कर लूं।
सुनिए--
इश्क और मुश्क "सच" नहीं छिपता
झूठ जियादा समय तक नहीं टिकता
रात कब रोक पायी आने से सुबह को
क्या ये सच तुमको नहीं दीखता ?
अब कहाँ इश्क और इश्क की बातें
हाय वो दौर अब नहीं दीखता
रांझे जाते हैं सुबह से कोचिंग
गलियों में अब तो कोई नहीं मिलता
कैरियर ने उफ़ लगाम यूँ डाली
दायें बायें अब कोई नहीं तकता
हीर हैरान है कैसा रांझा यह
"नेट" (इन्टरनेट पे चैटिंग के अलावा ) के बहार जो कभी नहीं मिलता।

पिता अजय पाठक के
"दिल की कलम से "

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