होली में गिन के पांच दिन बाकी रह गए हैं और इस त्यौहार के कारन ट्रेनों में इतनी भीड़ है की पंचू को इलाहाबाद का रेजर्वेसन ही नहीं मिलता. वो बड़ा दुखी होता है और बहन से कहता है- " ए दिदिया कौनो ट्रेन मा जगह नहीं आये? अरे हम ठाड़ होइके चले जाब(जाऊंगा), लटक के चले जाब, हमरे साथ कौनो जनाना (महिला ) तो आये नहीं. सुक्खू काका, गप्पी मओसिया सब निहारे (इंतज़ार कर रहे होंगे) होइन्हें हमका. बहुत पेट बरत है हमार ( बहुत याद आ रही है). कल जीजा के साथ खेलगांव जमुनाविहार तरफ से आवत रहा तो ढोलक ओलक बाजत रही, फाग जमा रहा. हम जीजा से कहा तनी रुक जाओ, सुन लीं जाए एक दुई फाग तो जीजा हुडुक (फटकार देना) दिहिन हमका. कहीं बिहारी लेबर हैं उनके बीच बैठोगे. सब दारू पिए होंगे. अपना नहीं तो कम से कम हमारे स्टेटस का तो ध्यान रखो."
पंचू- "ए दिदिया हमार मन हियाँ नहीं लागत आये. जीजा से कहो हमका कौनो तरह ट्रेन मा बैठाए भर दें हम पहुँच जाउब.
माया - " भैया इस बार शहर की होली भी तो मना के देखो. तुम रहते हो तो टीकू का भी मन लगा रहता है. "
पंचू- "अच्छा अब इत्ता कहती हौ तो रुक जाइत (जाता हूँ) ही. देख लीई कसत(कैसी ) होत ही दिल्ली की होली."
माया- " भैया बाजार से खोवा (मावा ) ले आओ तो कुछ गुझिया बना दें. "
पंचू- " और पापड़? आलू का पापड़, चालवल की कचहरी, चिप्स ई न बनहियो का? (ये नहीं बनोगी क्या)
माया- " पापड़ हम बना तो दें सुखायेंगे कहाँ? अपने गाँव के घर जैसे खुली छत कहाँ है यहाँ? "
पंचू- " दिदिया तुम कहाँ हियां एक दरबा मा आये के बसी हौ. न धुप मिले, न रौशनी. दिनौ मा अंधियार रहत है. "
माया- " अच्छा अब छोडो भी. तुम भी एक बार बातें शुरू करते हो तो फिर रुकने का नाम ही नहीं लेते हो. जाओ जल्दी से बाजार से सामान ले आओ, नहीं तो टीकू आ जाएगा स्कूल से तो फिर कुछ नहीं करने देगा वो. "
पंचू- " ( लिए झोला अपनी मस्ती में चला जा रहा है) ताभ्ही अचानक से कहीं से पानी से भरा एक गुब्बारा उसके चश्मे पर पड़ता है- "फचाक" . ए को आये( कौन है) . का भैया ई होली की रिहार्सर ( प्रैक्टिस ) होत ही का.अरे अबहीं तो दुई रोज बाकी है होली मा तनी गम खाओ( रुक जाओ). सड़क तो पार कर ले देओ. एक तो वैसेन दिल्ली की सड़क पार करब मुस्किल आये. हियाँ आदमी कम गाडी जिआदा देखाती हैं. तभी अचानक से पानी से भरा एक गुब्बारा एक बाईक सवार के चेहरे पे पड़ता है और उसका बैलेंस बिगड़ जाता है और वो गिर पड़ता है. कुछ लोग दौड़ते हुए आते हैं और उसे घेर लेते हैं. सड़क पे ट्रैफिक जाम. अपनी गाड़ियों से कोई नहीं उतरता सब सिर्फ कान फोडू होर्न बजाते हैं. पंचू को गुस्सा आता है पहले तो वह होर्न बजाने वालों पे चिल्लाता है -" देखाई नहीं देत एक आदमी गिर गा और तुम पाचन का आपण लाग ही( और तुम लोगों को अपनी पड़ी है)" और फिर गुस्से में उस घर की तरफ जाता है जिधर से वो गुब्बारा आया था. वहाँ पहुँच के - " ई कसत के होली आये हो(ये कैसी होली है) कौनो केर जीव लेई हौ का ( किसी की जान लोगे क्या). हाथ टूट गा ओकर. तुम्हार ई मजा मजा मा ओकर तो सजा होइगा न?' उस घर के लोग शर्मिन्दा होते हैं और पंचू से वडा करते हैं की वो आगे से ऐसी गलती नहीं करेंगे. नीचे आते ही वो लोगों से बाईक चालक के बारे में पूछता है और पता पड़ने पे की उसको अस्पताल पहुचा दिया गया है भगवान् का नाम लेके आगे बढ़ता है.
पंचू मिठाई की दुकान पर पहुच कर - " भैया एक किलो खोवा दई देओ. जब दुकानदार खोवा तौल रहा होता है वो खोवे को हाथ लगा कर देखता है और सूंघता है फटाक से बोलता है - ई तो नकली खोवा आये. एमा तुम शकरकंदी और आलू मिलाये हो न? " पंचू की बात सुनकर दुकानदार पहले तो थोडा सकपकाता है और फिर- क्या बकवास कर रहे हो पता नहीं कहाँ कहाँ से देहाती चले आते हैं नहीं लेना तो जाओ यहाँ से. पर पंचू अपनी बात पे अड़ा रहता है और उससे बहस करने लगता है. अब तो वहाँ खड़े लोगों को भी पंचू की बात पे यकीन होने लगता है. इत्तेफाक से उनमें से एक ग्राहक पत्रकार होता है वो फ़ौरन अपने चैनल वालों को खबर करता है और थोड़ी ही देर में वहाँ टीवी चैनल वालों की ओबी वैन आ जाती है और एक पत्रकार जोर जोर से उस दुकान की तरफ इशारा करता हुआ कहता है- ये दिल्ली की सबसे पुरानी मिठाई की दुकान है सोचिये जब यहाँ नकली खोवा मिल सकता है तो फिर और किस दुकानदार पे आप भरोसा करेंगे. कल कानपुर में भी एक क्विंटल नकली मावा बरामद हुआ है. टीवी चैनल के दबाव के चलते उस दुकान के मावे का सैम्पल चेक होता है और वो खोवा वाकई नकली होता है. अब तो हर चैनल पे पंचोऊ छा जाता है हर कोई उससे यही सवाल करता है की उसने नकली खोवे का पता लगाया कैसे.? वो बड़े अभिमान से कहता है हम गाँव के आदमी हैं भैया असली नकली का फरक हमें ख़ूब पता है.
पंचू के जीजा जी जब पंचू को टीवी पे देखते हैं तो पत्नी से पूछते हैं- साले साहब कहाँ हैं माया? माया- भैया खोवा लेने गए हैं क्यूँ कोई काम है क्या? विनय- " माया जल्दी आओ देखो साले साहब तो टीवी पे छाए हुए हैं. विनय मन ही मन सोचता है- " दिल्ली का हीरो तो अपना साला ही है. पंचू का एक्सक्लूसिव इन्तार्विव तो अब हम लेंगे अपने चैनल के लिए फिर देखना टी आर पी कैसे ऊपर जाती है अपने चैनल की आज. "
पंचू के घर आते ही विनय कहता है- " क्या साले साहब आप तो छ गए पूरी दिल्ली में.
पंचू- " जीजा वो दुकानदार नकली खोवा बचत रहा तो पकडाए दिया सरऊ का "
विनय- " बहुत बढ़िया किया आपने. अब जियादा वक़्त मत बर्वाद करो जल्दी से अपनी सबसे पुरानी धोती और थोड़ी फटी पुरानी बनियान पहन लो आपको मेरे साथ इन्तार्विव के लिए मेरे स्टूडियो चलना है पूरा देश आपको देखेगा.
पंचू- " ए जीजा सब देखियेहें हमका तो नायका वाला कपडा पहिने देओ नहीं तो मनग्रहोनी मा सब कईहें की देखो कैसे बनके टीवी मा आयित थी हम."
विनय- " अरे साले साहब आपकी किसी की बरात में थोड़े ही जा रहे हो इस सिचुएसन के लिए आपको वसे ही तैयार होना है जैसे मैंने कहा आपको. तुमको गाँव का हीरो हीरा लाल दिखाना है मुझे समझे.
पंचू- " अब तुम कहत हौ तो ठीक है होई, इत्ते बड़े पत्रकार हौ गलत थोड़े बोलिहौ?"
विनय बड़ी शान से पंचू को लेके अपने चैनल के स्टूडियो पहुचता है. पंचू के चेहरे से लगभग सभी लोग वाकिफ हो गए थे अब तक पर एक्सक्लूसिव इन्तार्विव अब तक किसी ने नहीं चलाया था क्यूँ की पंचू कैमरा देख के घबरा गया इसलिए जल्दी ही भाग आया था अपने घर.
एक पत्रकार ने विनय से पुछ्हा सर कहाँ से ले आये आप इन्हें और अभी तो ये कितने खुश हैं दुसरे चैनल पे तो ये बड़े घबराए हुए दिख रहे थे. हर चैनल वालों को इनकी ही तलाश है. आपको ये कहाँ मिल गए.
पंचू- " (बड़े गर्व से छाती चौड़ी करके बोलने ही वाला होता है ) ई हमार जी ....................
उतने में खटाक से विनय बोलता है -ये ये हमारे गाँव के ही रहने वाले हैं किसी काम से दिल्ली आये थे. घर पे कोई नौकर था नहीं उस वक़्त तो माया ने इन्हें बाजार खोवा लाने भेजा था और बाकि का किस्सा तो आप जानते ही हैं...............
पंचू ने आश्चर्य से विनय को देखा और फिर उसके चेहरे पे एक व्यंगात्मक मुस्कराहट आ गयी....................................
भावना के
"दिल की कलम से "
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