तुलसी दास जी के दोहे तो आपने बहुत पढ़े होंगे अब कुछ इस नाचीज़ के भी पढ़ लीजिये । आज की इस्थिती का जायजा लेते हुए मेरे दोहे -
सूखे के आसार हैं, आसमान है साफ़
बादल भी कह कर गए, अबकी कर दो माफ़।
( अब इस कदर जब ग्लोबल वार्मिंग होगी तो प्रकृती भी कब तक हमारा साथ देगी, उसको छेड़ोगे तो वो सजा तो देगी ही। )
जंगल कटते जा रहे, तेजी से चहु ओर
सऊखे का भी सुन रहे बार बार हम शोर ।
सूखे के संताप से मंत्री जी मायूस
जब जब सूखे है गला, तब तब पीवें जूस।
बाढ़ प्रकृति की दें है, कब इससे इनकार
पर बांधों ने और भी किया है बंटाधार।
(पंजाब और हरयान में अभी हाल ही में कितने लोगों की जान गयी, कितनो के घर बर्वाद हो गए सुना तो होगा ही और अगर वहाँ के हो आप तो भोगा भी होगा ना दोस्त।)
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