Friday, July 30, 2010

हवाएं देख के घर से निकल रहा हूँ मैं

हवाएं देख के घर से निकल रहा हूँ मैं
तरीके जीने के अपने बदल रहा हूँ मैं
न कोई शाम न अब तक कोई सहर आई
अजब सफ़र है के सदियों से चल रहा हूँ मैं
अकेला छोड़ के जायेगी तू कहाँ मुझको
ठहर ठहर अरी दुनिया के चल रहा हूँ मैं॥

शायर
श्रवण कुमार बहार "उज्जैनी"