Wednesday, July 21, 2010

दोहावली

लगता है सरकार ने गरीबी को नहीं गरीबों को ही मिटा देने की ठान ली है तभी तो वॉल मार्ट जैसे मल्तीनेस्नल कम्पनी को लूट की खुली छूट के लिए आमंत्रित कर रही है की वो हमारे देश में आकर हमारे ही छोटे व्यापारियों को रौंद डाले। बड़े बड़े मॉलों में कपडे लत्ते से लेकर, आटा, चावल, दाल, सब्जी सब मिले ताकि न तो दुकानों का कोई अस्तित्व रह जाए और न ही हाट बाज़ारों का। ज़रा सोचिये अभी आपको अगर छोटी चीज़ की ज़रुरत होती है तो आप फट से पास की दुकान से ले आते हो अगर पगार न मिली हो या पैसे ghat गए तो उसके यहाँ आपका खाता भी चलता होगा अगर वही दुकान बंद हो जाए और आपको छोटी मोती चीज़ों के लिए भी मॉल जाना पड़े तो कैसा लगेगा। मॉल की पहली खामी आप वहाँ जाके चीज़ों का मोल भाव नहीं कर सकते। पता चला आप लेने तो राशन गए थे पर साथ ही बाजू में टंगी एक शर्ट पे दिल आ गया तो वो भी खरीद लाये, तो हो गयी न जेब ढीली, बिगड़ गया न आपका बजट? सब्जी मंडियों में ढेरों सब्जियां होती हैं एक जगह कुछ नहीं अच्छा लगा या दाम जियादा लगा तो दूसरी जगह से ले लिया पर मॉल में आपको यह सुविधा कहाँ मिलेगी वहाँ तो जो है वही खरीदना पड़ेगा और जब वहाँ से खरीद रहे हो तो मॉल में ऐसी में मज़े से सब्जी खरीदने का चार्ज भी आपको ही देना पड़ेगा।
ज़रा सोचो आपको और हमें तो तकलीफ होगी ही साथ ही उन दुकानदारों का क्या, उन व्यापारियों का क्या जिनकी रोज़ी रोटी इससे चलती है ना जाने कितने लोग बेरोजगार हो जायेंगे। पहले ही बेरोज़गारी कम है क्या ऊपर से महंगाई ने कमर तोड़ रक्खी है। अब ऐसे में आदमी अपना पेट पालने के लिए चोरी डकैती, लूट पात करने लिए तो मजबूर होगा ही न क्राइम रेट तो बढेगा ही। क्या होगा अगर देश में एमेंसीज़ का बोल बाला होता है तो कुछ लिखने की कोशिश की है वक़्त निकाल के ज़रूओर पढियेगा।

छोटे छोटे व्यापारियों का तय है बंटाधार
राज करेंगी एमेंसीज , रोयेगा दुकानदार।
हाट दुकान नहीं होगी, न दिखेंगे फिर बाज़ार
बड़े मॉलों से खरीददारी को होंगे हम लाचार ।
फिक्स दाम पे मोल तोल का नहीं कोई आसार
डेबिट कार्ड बिना तो भैया भूल ही जाओ उधार।

4 comments:

  1. u have rightly pointed out the problems faced by small businessmans due to these big MNC's. but we sould also think about the those farmers,whose lands were taken to open these beautiful malls in which they can't go!!!!

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  2. beautiful couplets....nicely touching the issue.....simple easy and loving social fabric is going to suffer with this mega supermarkets.....
    it's eating up the local small stores.....
    sadly enough only a few will benefit with this globalization.....who thinks for the rest.....

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  3. good....
    you pointed the main bad effects very well.

    keep it up.

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  4. aap sab ne is baat ko mahsoos kiya aur aise globlisation ke khilaaf hai sun ke badi tasallee huyi dil ko ki chalo kuchh log to aise hain jinhe malls ki chaka chaund nahi chakit karti balki wo uske peechhe ke andhiyaare se waqif hain aur alok aapne bilkul sahi kahaan farmers ki zameen to so called development ke liye hamesha hi lee jati rahi hai chahe wo malls hon, bade bade baandh hon, high rise buildings hon jinse ki builders khoob munaafaa kamaate hain pista hamesha hi gareeb aur masoom tabkaa hai jo apne adhikaaron se vanchit hai. aap sab ko mera shukriya jo aapne apna keeemti waqt is blog ko diya doston.

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