जब भी आम आदमी मरता है वो सिर्फ आंकडा ही बन कर रह जाता है, उसी जगह अगर कोई नामी गिरामी आदमी की मौत हो जाए तो उसके बारे में बहुत कुछ लिखा जाता है। मीडिया वाले इमोशनल फीचर्स लिखते हैं उस पर, उसकी बचपन से लेकर उम्र के उस पड़ाव तक की अगर फोटो मिल जाए तो फिर सोने पे सुहागा एक अच्छा खासा कोलाज तैयार हो जाता है। पर आम आदमी की कीमत तो हमारे यहाँ हर चीज़ से सस्ती है। जियादा विरोध न हो, लोगों का गुस्सा आक्रोश बनके न फूटे इसलिए मरने वालों के परिजनों की तरफ मुआवजे का टुकड़ा फेंक दिया जाता है।
तुम जब इस देश का इतिहास लिखोगे
क्या मेरी भूख मेरी प्यास लिखोगे
दंगे में मुखिया मर गया, बच्चे हुए उदास
तुम आंकड़ों में सिर्फ एक लाश लिखोगे॥
शायद अब इससे आगे कुछ भी कहने की ज़रुरत नहीं मुझे, है न ?
(जिन शायरों का नाम मुझे पता है मै लिख दूंगी पर अगर न लिखूं तो समझिएगा की मुझे पता नहीं है और अगर आपको पता हो तो ज़रूर बताईयेगा )
शायर ???
bahut khoob.
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