Sunday, July 18, 2010

अब कहाँ मिल पाता है दादी नानी का साथ

भास्कर के एडिटोरिअल पेज पे हर रोज़ छोटी सी बात आती है जिसे मैं ज़रूर पढ़ती हूँ उसमें ही पढ़ा था कि हम इस सभ्यता और संस्कारों कि बड़ी दुहाई देते रहते है कि हमारे यहाँ बुजुर्गों का बड़ा सम्मान किया जाता है, बड़ा आदर सत्कार देते हैं हम उनको पर एक सर्वे के हिसाब से बड़े बुजुर्गों का सम्मान करने में चालीस देशों के उस सर्वे के हिसाब से हम आखिरी पायदान पे खड़े हैं उनका सम्मान करने के नाम पे। अब ये सर्वे कितना सही है और कितना गलत ये तो मै नहीं जानती पर इतना ज़रूर जानती हूँ कि अगर आज भी पहले के जैसा ही हम अपने दादी दादा, नानी नाना या जो कोई भी उम्र दराज़ हो उसकी कद्र करते तो शायद उनको ओल्ड एज होम में जाने कि ज़रुरत नहीं पड़ती। वो अपना बुढापा वहाँ काटने के बजाये अपने नाती पोतों के साथ हंसी ख़ुशी बाकी की ज़िन्दगी बिता देते , उनको किस्से कहानियां सुनाते हुए। इसी पर कुछ लिखने कि एक छोटी सी कोशिश की है मैंने उम्मीद है आप लोगों को पसंद आएगी -

अब भला बच्चों को कहाँ मिल पाता है दादी नानी का साथ

खुद किस्सा बन गई , उनके किस्से कहानियों की सौगात

मम्मी डैडी प्यार से कभी कुछ नहीं सिखाते

डांट डपट और मार पीट बस हमें डराते

दादू के संग गाँव में मेला घूमने जाते

नानू घोडा बनते उनपे हम चढ़ जाते

जब भी मम्मी मारती दादी हमें बचाती

नानी से तो मम्मी उल्टा ही डांट खाती

हमें दादी दादू के आती है बहुत याद

रोते हैं नानू नानी जब करते हैं हमसे बात

भावना की

"दिल की कलम से "

2 comments:

  1. Bhawanon ko sahi shabdon se sanwara hai aapne......:)) sach men ab wo bachpan kanha.... ab na wo rahi kahaniya..... na wo sapne . na wo pyar.....jane kisa ho gaya sansar .....

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  2. kya khoob kahi mahesh ji aur waqt nikaal ke isse padhne ke liye sath apni pratikriya dene ke liye tahe dil se shukriya sahab keep in touch

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