Wednesday, July 28, 2010

बाज़ार का घिनौना चेहरा आपको दिखाने की कोशिश

हम आजकल इस कदर चीज़ों में ख़ुशी तलाशने लगे हैं की असल ख़ुशी के मायने ही भूलते जा रहे हैं। आज गाडी, बंगला, हर तरह का ऐशो आराम ही ख़ुशी का पर्याय बन गया है। पैसा कमाने के चक्कर में सारे रिश्ते नातों को ताक पर रख दिया है। काम के बोझ तले, आगे निकलने की होड़ में, टार्गेट पूरा करने के आगे और कुछ दिखाई ही नहीं देता। खैर इसमें सारा दोष हमारा हो ऐसा नहीं है ये सारा मायाजाल बाजारवाद का फैलाया हुआ है। जिसकी चमक दमक ने हम सबको चका चौंध कर दिया है। इस बाज़ार में हम एक ग्राहक है और हर चीज़ ही बिकाऊ है। रिश्ते नातों, भावनाओ, किसी के सुख दुःख से इसको कोई लेना देना नहीं है। यहाँ उसी की कीमत है जो बिकाऊ हो और जिसकी अच्छी कीमत मिले। अगर आप में खरीदने की क्षमता नहीं है तो माफ़ कीजियेगा इस बाज़ार में आपके लिए कुछ भी नहीं है। पहले आप इतने पैसे लायें की बड़े बड़े मॉलों से कुछ खरीद सकें, अगर आपका स्टेटस हाई फाई नहीं तो आप बड़े लोगों के साथ नहीं उठ बैठ सकते समझे आप ये इस बाजारवादी सभ्यता का कायदा है। तथाकथित विकसित देश विकाशील और पिछड़े देशों का उसी तरह से दोहन कर रहे हैं जिस तरह से अमीर गरीबों का खून चूसता है। हम क्या खो रहे हैं आज भले ही इसका एहसास हमें न हो क्यूंकि चका चौदह ने हमें अँधा बना दिया है पर जब आँखें खुलेंगी तो पता चलेगा सब कुछ लुट गया। अब भी वक़्त है इस जोंक से खुद को को बचा लो वरना इतना भी खून नहीं रह जाएगा, इतनी भी शक्ति नहीं रह जायेगी की मदद के लिए किसी को गुहार भी लगा सको। इस बाज़ार के आगे सरकारों की भी नहीं चलेगी हुज़ूर। मिनरल वाटर के नाम पे वो पानी जिस पर आपका अधिकार है आपको ही उनचन दामों पर बेचा जा रहा है। ज़मीनों के दाम इस कदर बढ़ गए हैं की आज खुद का घर एक आम आदमी के लिए सपने सा ही हो गया है। बड़े बड़े बिल्डर्स का बस चले तो खेतों की सारी ज़मीन पर वो हाई राइज़ बिल्डिंग्स ही बना के उनको ऊँचे दामों पर बेच दें। इस बाज़ार की नग्नता को आपके सामने रखने की एक छोटी सी कोशिश की है ---

कुदरत से जो मिल रहे थे हमको उपहार

भरी कीमत ले रहा उनकी भी बाज़ार॥

बना मदारी दुग्दुगी बजा रहा बाज़ार

नाच रही बन्दर बनी देशो की सरकार॥

संसाधन सब छीन कर कहते करो विकास

पंख काट के कह रहे आओ छुए अकास ॥ ( आसमान )

घटी गरीबी वे कहें , करें आंकड़े पेश

मगर गरीबी घुमती नए नए धर वेश ॥

3 comments:

  1. poem tells a lot.....
    poverty is real and hinders everything...
    but the problem should be tackled not only by politicians(honest)but people have to put up their share....

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  2. and the otherside of this capitalism is "Naxalvaad". peoples who protest against these MNC's,are tagged as "maoist".

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  3. sach bolne wala gunahgaar kahlata hai aaj ke zamaane mein doston wo hi dimaagdaar mana jata hai jo dhara chahe vinaashkaari hi kyun na ho uske sath bas chup chaap chalta rahe aur waise bhi dhara ke vipreet chalne mein ziyada mehnat lagti hai isliye ye madda bahut kam logon mein hi hota hai aur jinmein hota hai unko chahe maoist kaho ya kuchh aur kya farq padta hai

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