Thursday, July 29, 2010

जिद्द

रौशनी की नयी कतार बनाने की जिद्द
लीक से हटके कोई धार बनाने की जिद्द
हमने क्या क्या न बनाया है कलम को अब तक
इस नए दौर में हथियार बनाने की जिद्द
प्यार माना की है गुनाह ज़माने में मगर
खुद को सौ बार गुनाहगार बनाने की जिद्द
मौत आकर है खड़ी राहे वतन में लेकिन
मौत को हम में है त्यौहार बनाने की जिद्द
बिका दिमाग, बिकी रूह, जुबां भी गिरवी
फिर भी अखबार को अखबार बनाने की जिद्द

शायर का पता नहीं अगर आपको पता हो तो प्लीज़ ऐड कर दीजियेगा पर है ये भी शायर के
"दिल की ही कलम से "

शायर ???

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