फ़िल्म मांझी द माउंटेन मैन की समीक्षा
#Sensiblecinema के तहत् आज (29/05/2020) नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत एवं केतन मेहता द्वारा निर्देशित #Manjhithemountainman देखी। 2015 में रिलीज हुई मांझी द माउंटेन मैन बिहार के गया के एक छोटे से गांव गेलूर के मजदूर दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित फिल्म है जो बिना रुके, बिना थके लगातार 22 वर्षों तक एक पहाड़ को तोड़ते रहे ताकि उनके गांव और वजीरपुर की दूरी को कम किया जा सके और गांव वालों की ज़िन्दगी आसान बनाई जा सके। दशरथ मांझी ऐसे मिशन पर थे जिसे ना तो अंग्रेज़ पूरा कर सके और ना ही कोई सरकार उस पहाड़ को काटकर रास्ता बना पाई। इस फ़िल्म में दशरथ मांझी के किरदार के लिए #नवाज़ुद्दीन हमेशा याद किए जाएंगे। दशरथ मांझी (नवाज़ुद्दीन) की पत्नि का किरदार निभाया है राधिका आप्टे ने, उनके पिता मगरू के किरदार में हैं अशरफ उल हक़, मुखिया की भूमिका में हैं जाने माने फ़िल्म डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया और मुखिया के बेटे का किरदार निभाया है पंकज त्रिपाठी ने। ये कहानी है उस प्रबल प्रेम की जो अकेला ही अपनी छैनी और हथौड़े से पहाड़ को तोड़कर उम्मीदों का रास्ता आप ही बनाता है ताकि फिर कोई फगुनिया सही वक़्त पर इलाज के अभाव में दम ना तोड़े।
ये कहानी है उस दशरथ मांझी की जो अपने बाप मगरू की तरह गांव के मुखिया के यहां बेगारी नहीं करना चाहता इसलिए वो धनबाद भाग जाता है और वहां कोल माइन में काम करने लगता है पर जब उसे अपने गांव घर की याद आती है तो वो वापस आ जाता है। रास्ते में उसकी मुलाक़ात एक हंसमुख लड़की से होती है जो वही लड़की थी जिससे उसकी बचपन में शादी हुई थी पर अब लड़की का पिता अपनी बेटी को दशरथ के साथ भेजने से इंकार कर देता है। दशरथ फगुनिया को लेकर भाग जाता है। उनकी ज़िन्दगी संघर्ष भरी ज़रूर थी पर दोनों एक दूसरे के साथ ख़ुशी खुशी ज़िन्दगी बसर कर रहे थे। एक दिन फगुनिया दशरथ को रोटी पानी देने पहाड़ के रास्ते खेत पर जा रही थी कि पांव फिसल जाने से वह पहाड़ से गिर जाती है और अस्पताल पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती है। दशरथ फगुनिया से बेइंतहां मोहब्बत करता था, उसकी मौत की वजह वो पहाड़ थी जिससे वो गिरी थी। यहीं से दशरथ और उस पहाड़ के बीच जंग शुरू होती है। वो पहाड़ से कहता है: बहुत घमंड है ना तोहरा के, बहुत अकड़ है, सब भ्रम है, सारा अकड़ हम तोड़ेंगे, जब तक तोड़ेंगे नहीं छोड़ेंगे नहीं। वो रोज़ अपनी छैनी हथौड़ा लेकर पहाड़ तोड़ने जाता है। सब उसे पागल पहाड़ तोड़वा बुलाते हैं यहां तक कि उसके पिता भी कहते हैं काहे पहाड़ से अपना माथा टकरा रहा है, पहाड़ से कौन ख़ज़ाना निकलेगा तो दशरथ कहता है रास्ता निकलेगा। दशरथ का डायलॉग शानदार, ज़बरदस्त, ज़िंदाबाद प्रतीक है उसकी ज़िंदादिली और जुनून का जो कठिन से कठिन परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकता, हार नहीं मानता और डटा रहता है अपने अटल विश्वास के साथ। जब पत्रकार उससे कहता है कि बड़ा मुश्किल है अपना अख़बार निकालना तो दशरथ उससे पूछता है क्या अपना अख़बार निकालना पहाड़ तोड़ने से भी कठिन है तो पत्रकार निशब्द हो जाता है। दशरथ प्रगतिशील विचारधारा का है जब उसे पता चलता है कि उसकी बेटी गांव एक ही एक लड़के से प्रेम करती है और दोनों शादी करना चाहते हैं तो वो लड़के के पिता को समझाने जाता है और जब वो नहीं मानता तो कहता है: तोड़ने को तो हम कुछ भी तोड़ सकते हैं, पहाड़ भी पर बच्चों का दिल मै नहीं तोड़ना चाहता। आखिरी सीन में दशरथ पत्रकार बाबू से कहता है: हमको हर चीज के लिए भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो। अपना रास्ता आप ही बनाना है।
इस फ़िल्म के ज़रिए निर्देशक ने कई और गंभीर मुद्दों को भी सांकेतिक रूप में उठाया है फिर चाहे वो छुआछूत का मुद्दा हो, ऊंची जात वालों के द्वारा गरीब मजदूरों को बंधुआ बना उनसे बेगारी कराने का मामला हो, न्याय के अभाव में बंदूक उठा नक्सली बनने का मुद्दा हो, ऊंची जात वालों द्वारा कमज़ोर वर्ग के लोगों की औरतों का शोषण करने का मामला हो या फिर दबंगो द्वारा दशरथ मांझी के नाम पर मिलने वाली ग्रांट को हड़प कर जाने का मामला।
नवाज़ुद्दीन मुजफ्फरनगर से हैं इसलिए भाषा के साथ न्याय कर पाए। पंकज त्रिपाठी ने भी खलनायक की भूमिका को बख़ूबी निभाया है। फगुनिया के किरदार को राधिका ने भी अच्छे से निभाने की कोशिश की है। डायरेक्टर ने नवाज़ुद्दीन को दशरथ मांझी जैसा लुक देने की भरपूर कोशिश की और कामयाब रहे। नवाज़ुद्दीन ने जिस आत्मीयता से इस किरदार को निभाया है वो कभी भूला नहीं जा सकता। इस फ़िल्म को हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों की श्रेणी में रखा जा सकता है। घोर निराशा में फगुनिया की स्मृति दशरथ के थके हारे मन में ऊर्जा का संचार करती है। पहाड़ को चीरकर बनाया गया रास्ता दशरथ मांझी और फगुनिया के प्रेम की अमिट निशानी के रूप में हमारी स्मृतियों में रहेगा जो किसी ताजमहल से कम नहीं।
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