Tuesday, May 26, 2020

फ़िल्म #Pataallok की समीक्षा

वेब सीरीज #Pataallok की समीक्षा 

इन दिनों वेब सीरीज #पाताललोक की खूब चर्चा है। कल रात (25/0502020) मैंने भी ये वेब सीरीज देखी। नीरज कुन्देर सीधी भइया ने भी कहा था ये फ़िल्म देखनी चाहिए। #Jaavedakhtar साहब ने भी ट्विटर पर इस सीरीज की तारीफ़ की है। इसके अलावा आलिया भट्ट, अर्जुन कपूर और रणबीर सिंह ने भी अनुष्का शर्मा को इस सीरीज के प्रोडक्शन के लिए बधाई दी और पाताल लोक की तारीफ की। इस फ़िल्म की सफलता ऐक्टर अनुष्का शर्मा के लिए इसलिए भी मायने रखती है क्यूंकि बतौर प्रोड्यूसर ये उनका पहला वेब प्रोडक्शन है। पाताल लोक अमेजॉन प्राइम वीडियो पर 15 मई, 2020 से स्ट्रीम हो रही है। नौ एपिसोड की इस थ्रिलर ड्रामा वेब सीरीज में मुख्य किरदार की भूमिका में हैं जयदीप अहलावत, नीरज काबी एवं गुल पनाग। इस वेब सीरीज का कॉन्सेप्ट तीन लोकों (स्वर्ग, धरती और नर्क या पाताल लोक) पर आधारित है। हाथी राम चौधरी (जयदीप अहलावत) फ़िल्म में एक जगह अपने जूनियर पुलिस वाले से कहता है, दिल्ली के थानों को एरिया वाइज स्वर्ग, धरती और पाताल लोक में बांटा जा सकता है। स्वर्ग लोक में आते है पॉश और वीआईपी दिल्ली के इलाके वाले थाने, धरती लोक में शाहदरा, महरौली के इलाके वाले थाने और जमुना पार वाले थाने हुए पाताल लोक के थाने जहां रहते हैं कीड़े मकौड़े। रियलिज्म के नक्शे कदम पर आधारित इस वेब सीरीज का हीरो (जयदीप अहलावत)हमें अपना सा लगता है, बड़ा ही नेचुरल बिना किसी सुपर पॉवर के जो धूर्त और फरेबी लोगों तथा अपराधियों के मुंह ना खोलने पर ताबड़तोड़ गालियां भी देता है। फ़िल्म का विलेन जिसे सब हथौड़ा त्यागी (अभिषेक बैनर्जी) के नाम से पहचानते हैं जब हमें उसकी असली कहानी का पता चलता है तो दिल नहीं करता कि उससे नफ़रत की जाए। हथौड़ा त्यागी यानि विशाल एक अच्छा स्पोर्ट्स मैन बन सकता था पर हालात ने उसे अपराधी बना दिया। इस सीरीज में अभिषेक बैनर्जी ने अपने अभिनय से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। फ़िल्म में अभिषेक के गिने चुने डायलॉग हैं फिर भी वो अपने हावभाव से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खीचने में सफल हुए हैं। फ़िल्म में फ़्लैश बैक तकनीक का बेहतर उपयोग किया गया है। हालाकि कहानी आधे में समझ में आ जाती है लेकिन फ़्लैश बैक तकनीक के ज़रिए जिस तरह से पुलिस की गिरफ्त में आए चारो लोगों की कहानी बताई गई है वो दिलचस्प है।
फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है कि चार लोग एक जाने माने न्यूज एंकर संजीव मेहरा (नीरज काबी) को मारना चाहते हैं पर अपने मिशन में कामयाब नही हो पाते और पुलिस की गिरफ्त में आ जाते हैं। पुलिस के पास से ये केस सीबीआई के पास चला जाता है और सीबीआई इस केस को एक नया रंग दे देती है। सीबीआई कहती है कि कोई अंतरराष्ट्रीय गैंग संजीव मेहरा को मारना चाहता है ताकि देश में अस्थिरता का माहौल बने। पर इस केस की सच्चाई कुछ और थी और कई लीड्स के ज़रिए हाथी राम उस सच्चाई तक पहुंचने वाला ही होता है कि उसे सस्पेंड कर दिया जाता है। सस्पेंड होने के बावजूद हाथी राम चौधरी हार नहीं मानता और केस को अपने स्तर पर सुलझाने की कोशिश करता है जिसमें उसका जूनियर इमरान उसकी काफी मदद करता है। वो केस की तह तक पहुंच जाता है और उसकी एवज में मुंह बंद रखने के लिए उसका सस्पेंशन ख़त्म कर दिया जाता है। फ़िल्म में कई किरदारों की कहानियां एक साथ चल रही होती हैं। चीनी के बचपन की कहानी जब उसका दोस्त हाथी राम को बताता है तो उन दृश्यों को देखकर मीरा नैयर की फ़िल्म सलाम बॉम्बे के स्ट्रीट चिल्ड्रेन की संघर्ष भरी ज़िन्दगी की याद आ जाती है और मन सिहर उठता है। हथौड़ा उर्फ विशाल त्यागी की कहानी बुंदेलखंड ले जाती है। अपनी बहनों का बदला लेने के लिए विशाल स्कूल में तीन लड़कों की हथौड़ा मारकर हत्या कर देता है। बुंदेलखंड का दुनलिया गूजर विशाल को पुलिस से बचाकर उसे अपने यहां पनाह देता है जिसका कर्ज़ वो मरते दम तक चुकाता है और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। सारे मर्डर विशाल ने दुनलिया उर्फ़ मास्टर जी के कहने पर किए थे पर न्यूज़ एंकर संजीव मेहरा को मारते वक़्त उसके हाथ क्यूं ठिठक जाते हैं जानने के लिए इस वेब सीरीज को देखिएगा। बुन्देली भाषा कहीं कहीं अवधी के साथ मिलकर खिचड़ी हो गई है जो सिर्फ बुन्देली क्षेत्र से वास्ता रखने वालों को ज़रूर  महसूस होगी। नीरज काबी का रोल भी काबिले तारीफ है। चोर चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करती यह फ़िल्म सत्ता और अपराधियों के गठजोड़ को बख़ूबी दिखाती है। कुछ डायलॉग्स बहुत उम्दा हैं जैसे : जिसे मैंने मुसलमान तक ना बनने दिया उसे आप लोगों बने जिहादी बना दिया, हमरी आंख में नागिन को मेमोरी है रे जो फोटो देख लेते हैं दिमाग में कैद हो जाता है, शास्त्रों में लिखा है पर मैने व्हाट्सएप पर पढ़ा था आदि। इस सीरीज को आप अपनी व्यू लिस्ट में शामिल कर सकते हैं।

1 comment:

  1. बहुत ज़ल्दबाज़ी में समीक्षा लिख दी। महिला किरदारों के बारे में कलम नही चलाई।

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