Wednesday, May 13, 2020

फ़िल्म #Thegoal की समीक्षा

फ़िल्म #Thegoal की समीक्षा ( यादों में इरफ़ान सीरीज...11) 

आज यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत इरफ़ान अभिनीत फिल्म #Thegoal देखी जो चिल्ड्रेन फ़िल्म सोसायटी ऑफ इंडिया के बैनर तले बनी थी। ये फ़िल्म 1999 में रिलीज़ हुई थी और इसका निर्देशन किया था गुल बहार सिंह जी ने। गुल बहार सिंह जी को उम्दा फिल्मों के निर्देशन के लिए छः बार नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। डेढ़ घंटे की #Thegoal भी उनकी बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है जिसमें इरफ़ान खान ने एक कोच अनुपम की भूमिका निभाई है। इरफ़ान ने कभी एक ही तरह के किरदार नहीं निभाए बल्कि वो हमेशा अपने अभिनय को परखते रहे उसे और निखारते रहे। अभिनय उनके लिए किसी साधना से कम नहीं था और वो एक योगी की भांति अथक, अनवरत एकाग्रचित हो इस साधना में लीन रहे। वो कभी भी फिल्मों के बड़े बैनर और फिल्मों के आर्थिक जोड़ तोड़ के हिसाब में कभी नहीं पड़े। वो एक विशुद्ध सरल हृदय, सजग और बेबाक अभिनेता थे जो कई किरदारों के रूप में हमारी स्मृतियों में सदैव जीवित रहेंगे। 
फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह है कि अनुपम (इरफ़ान खान) जो बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी थे गहरी चोट के कारण आगे फुटबाल नहीं खेल पाए पर इस खेल से अत्यंत प्रेम होने के कारण वो फुटबाल कोच बन गए। उनके एक मित्र प्रकाश ने अपने क्लब के प्रेसिडेंट बंकिम बाबू के आग्रह पर अनुपम को कलकत्ता से अपने शहर आकर उनके क्लब की बच्चों की टीम बुलेट इलेवन को कोच करने के लिए बुलाया क्यूंकि बंकिम बाबू की हार्दिक इच्छा थी कि भुवन मोहिनी चैलेंज कप के सिल्वर जुबली के उपलक्ष्य पर इस बार ट्रॉफी बुलेट इलेवन ही जीते। इरफ़ान एक ईमानदार कोच की तरह अपनी टीम पर काम शुरू करते हैं, टीम की खामियों पर काम करते हैं और टीम को इस खेल की बारीकियां समझाते हैं। वो बंकिम बाबू से भी साफ साफ कहते हैं कि कोई उनके काम में दखलंदाजी नहीं करेगा, सुझाव दे सकता है पर उस सुझाव को अमल में लाना है या नहीं उसका निर्णय वो खुद लेंगे। बंकिम बाबू को तो बस ट्रॉफी दिखाई देती है बाकी अनुपम क्य और कैसे करना चाहते हैं इससे उनको कोई लेना देना नहीं पर बंकिम बाबू अपने कमिटमेंट के पक्के होते हैं और जो भी कहना होता है साफ साफ कहते हैं। बच्चों की टीम को कोच करने के दौरान अनुपम देखते हैं कि एक गरीब लड़का बड़े ध्यान से अनुपम को कोच करते हुए चुपचाप देखता रहता है और जब फुटबॉल उसके पास पहुंचती है तो वो अच्छा शॉट लगाता है। वो लड़का (मनु) अनुपम से उसे भी टीम में खिलाने के लिए कहता है पर क्यूंकि वो क्लब का मेंबर नहीं होता अनुपम मजबूरीवश उसे टीम में नहीं रख पाते लेकिन उसे प्रैक्टिस पर रोज़ आने को कहते हैं। एक दिन अनुपम मनु को अच्छा खेलने पर बीस रुपए देते हैं और कहते हैं इससे कुछ अच्छा खाने के लिए खरीदना तो मनु बारह रुपए की फुटबॉल खरीदता है और चविंगम और बाकी का बचा पैसा अपनी मां को देने लगता है तो मां उसे डांटने लगती है और पूछती है कि कहीं वो भी तो अपने पिता की तरह कहीं से चोरी करके नहीं लाया? बाप के गुनाहों का साया मनु का पीछा नहीं छोड़ता, सब उसे चोर का बेटा कह कर बुलाते हैं और इसी कारण अच्छा खेलने के बावजूद बुलेट इलेवन के बच्चे मनु को अपनी टीम में रखने के अनुपम के फैसले का पुरजोर विरोध करते हैं और बच्चों के मां बाप भी। अनुपम जानते हैं कि मनु में अपार संभावनाएं हैं और यदि उसको सही मार्गदर्शन मिले तो वह नेशनल फुटबॉल प्लयेर बन सकता है, मनु वो गुदड़ी का लाल है जिसे सही मौका देने की ज़रूरत है।  अनुपम शहर से दूर दराज के इलाकों में कोच करने की हामी ही इसलिए भरते हैं ताकि वो गावों में पल रहे गुदड़ी के लालों की प्रतिभा को निखार सकें और उनके लिए उनसे जो बन सके हर संभव प्रयास करें। जब उनकी टीम के लोग मनु को अपनी टीम में रखने के लिए तैयार नहीं होते तो अनुपम मनु को लेकर अपनी प्रतिद्वंदी टीम के प्रेसिडेंट और कोच तक के पास जाते हैं ताकि उसकी प्रतिभा अभावों में दम ना तोड़ दे। जिस तरह एक शिष्य को अच्छे गुरु की तलाश होती है ठीक उसी तरह एक गुरु भी अच्छे शिष्य की तलाश में होता है ताकि जौहरी की भांति वो उस हीरे को तराश सके। 
फ़िल्म का डायरेक्शन शानदार है। फ़िल्म की शूटिंग बंगाली पृष्टभूमि पर आधारित है। बंकिम बाबू का किरदार भी लाजवाब है। उनके हाव भाव, संवाद अदायगी ज़बरदस्त है। इरफ़ान के बारे में तो जितना कहूं कम ही होगा। उन्हें जो भी किरदार दिया जाता है वो हर किरदार में फिट बैठते हैं। कहीं भी इरफ़ान ये गुंजाइश ही नहीं छोड़ते कि हम उनके एक किरदार में किसी और अभिनेता को उनसे ज़्यादा बेहतर पाएं। फ़िल्म एक सशक्त संदेश देती है कि प्रतिभाओं के पंख होते हैं और वो अपनी मंज़िल खुद ही ढूंढ़ लेती हैं। ये फ़िल्म आपको ज़रूर देखनी चाहिए साथ ही अपने मित्रों को भी सजेस्ट करनी चाहिए। फ़िल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है।

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