Tuesday, May 5, 2020

फ़िल्म #Haasil की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...05)

फ़िल्म #Haasil की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...05)

 आज (03/05/2020) यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत इरफ़ान की फिल्म #Haasil देखी जो 2003 में रिलीज़ हुई थी। तिग्मांशु धूलिया निर्देशित #Haasil ही वो फ़िल्म है जिसने बतौर ऐक्टर इरफ़ान को पहचान दिलाई और इस फ़िल्म के लिए उन्हें बेस्ट नेगेटिव किरदार निभाने के लिए फ़िल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला था। कहते हैं तिग्मांशु और इरफ़ान एनएसडी टाइम से एक दूसरे के अच्छे दोस्त थे और अपना दोस्ताना तिग्मांशु ने इरफ़ान के अंतिम सफ़र तक निभाया, इरफ़ान का जनाजा तिग्मांशु के कांधे पर ही गया, आज के समय में ऐसी दोस्ती कम ही देखने को मिलती है। इरफ़ान और तिग्मांशु की ये जोड़ी पान सिंह तोमर में भी देखने को मिली।
हासिल फ़िल्म की कहानी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स पर आधारित है जिसमें दो गुटों के बीच पिसती है एक कपल की मोहब्बत भी। रणविजय (इरफ़ान खान) और गौरीशंकर (आशुतोष राणा) दो अलग अलग गुटों के छात्र नेता है और दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा होता है। इधर यूनिवर्सिटी में सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा होता है और उधर गोली चलने की आवाज़ आती है, गौरीशंकर वीसी को आश्वस्त करता है कि वो परेशान ना हों वो जाकर देखता है कि आखिर मामला क्या है? जाकर देखने पर पता चलता है कि रणविजय और इसके गुट के लोगों के बीच लड़ाई झगड़ा चल रहा है। रणविजय पिछड़े वर्ग के छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है और यूनिवर्सिटी में लॉ का स्टूडेंट है, गौरीशंकर यूनिवर्सिटी का पूर्व छात्र है पर उसका भाई बद्रीनाथ पांडेय युनिवर्सटी में ही पढ़ता है। यूनिवर्सिटी में छात्र संघ का चुनाव होने वाला होता है एक तरफ बद्रीनाथ छात्र नेता के प्रत्याशी के रूप में है तो दूसरी तरफ रणविजय है। गौरीशंकर को विधानसभा का चुनाव लडना है इसलिए वो रणविजय से पंगा लेकर अपनी इमेज खराब नहीं करना चाहता पर जब रणविजय उसके खास आदमी को मार देता है तो बदला लेने के लिए वो रणविजय के गांव के कई लोगों को मरवा देता है, इस बात का बदला रणविजय गौरीशंकर को गोली मारकर लेता है और दूसरी तरफ वो छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में भी चुना जाता है। साथ ही पैरलल एक और कहानी चलती है अनिरुद्ध (जिमी शेरगिल) और निहारिका (ऋषिता भट्ट) की प्रेम कहानी। अनिरुद्ध जाने अनजाने रणविजय के संपर्क में आता है और धीरे धीरे उसके ट्रैप में फंसता जाता है। रणविजय अनिरुद्ध का भरोसा जीतता है, वो निहारिका से मिल सके उसकी व्यवस्था करता है पर धीरे धीरे रणविजय भी निहारिका से प्रेम करने लगता है और उसे पाने के लिए वो अनिरुद्ध को उससे दूर करने की पूरी रणनीति बनता है। क्या रणविजय को निहारिका हासिल होगी, क्या वो अपने मकसद में कामयाब हो पाएगा जानने के लिए फ़िल्म देखिएगा ज़रूर। 
इरफ़ान ने नेगेटिव कैरेक्टर को बख़ूबी निभाया है। इस फ़िल्म में अपने किरदार में इलाहाबादी टच लाने के लिए इरफ़ान सात आठ दिन जाकर इलाहाबाद रहे, लोगों से बातचीत की, इलाहाबादी टोन को पकड़ने की कोशिश की और यकीन मानिए ऐसा लगता ही नहीं कि इरफ़ान इलाहाबाद से नहीं बल्कि राजस्थान से हैं। इरफ़ान मेथड एक्टिंग को बख़ूबी निभाने वाले उम्दा अभिनेता थे। जिमी शेरगिल और आशुतोष राणा का किरदार भी अच्छा है पर सब पर भारी इरफ़ान ही पड़ते हैं। उनकी व्यंगात्मक हंसी, चेहरे के एक्सप्रेशंस, बातें करती आंखें उनके किरदार को ज़बरदस्त बनाती है।

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