फ़िल्म #Kuselan का हिंदी डब वर्ज़न दिलवाला द रियल मैन की समीक्षा
मिशन #Sensiblecinema और यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत आज (21/05/2020) रजनीकांत, पशुपति, मीना और नयनतारा अभिनीत तमिल फिल्म #Kuselan जो 2008 में रिलीज़ हुई थी उसका हिंदी डब वर्ज़न #Dilwalatherealman देखा। इस फ़िल्म को निर्देशित किया है पी वासु ने और ये फ़िल्म 2007 में अाई मलयालम फ़िल्म कथा परायुंबोल का रीमेक थी। आप सोच रहे होंगे मैंने कहा यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत ये फ़िल्म देखी पर इस फिल्म में तो इरफ़ान हैं ही नहीं। दरअसल उनकी फिल्म #Billu इन फिल्मों का रीमेक है, मुझे बिल्लू तो नहीं मिली तो सोचा क्यूं ना तमिल मूवी #Kuselan ही देख ली जाए। कुसेलन महाभारत के वो पात्र थे जो श्री कृष्ण के बचपन के सखा माने जाते हैं और जिन्हें उत्तर भारत में शायद हम सुदामा के नाम से जानते हैं जो श्री कृष्ण से अपनी दरिद्रता और गरीबी के कारण मिलने से हिचकिचाते हैं कि कहीं कृष्ण उन्हें अपना सखा मानने से ही इंकार ना कर दे। इसी कहानी को कूसेलन फ़िल्म का आधार बनाया गया है जो दो ऐसे दोस्तों की कहानी है जो बचपन में साथ पढ़े थे। हालत ने उसमें से एक को बाल काटने वाला नाई बना दिया तो दूसरे को क़िस्मत ने फ़िल्मों का सुपर स्टार।
बालकृष्ण यानि बालू (पशुपति) और अशोक कुमार (रजनीकांत) बचपन में एक ही स्कूल में पढ़े थे। बालकृष्ण ने ही अशोक को इस बात का एहसास कराया था कि उसके अंदर एक कलाकार है और उसे फ़िल्मों में ट्राई करना चाहिए। अशोक को मद्रास भेजने के लिए बालकृष्ण अपने कान की बाली बेंचकर उसके लिए पैसों का बंदोबस्त करता है। ये बात सभी को तब पता चलती है जब स्वयं सुपर स्टार बन चुके अशोक कुमार एक स्कूल की सिल्वर जुबली में अपने दोस्त बालू के बारे में सबको बताते हैं, अपना बचपन और अपने बचपन के दोस्त के बारे में बताते हुए उनकी आंखें भर आती हैं। बालू भी अपने दोस्त अशोक कुमार की बातें सुनकर सिसक सिसक कर रो पड़ता है, उसकी पत्नि देवी (मीना) की आंखें भी भर आती हैं। फ़िल्म के आखरी के पंद्रह मिनट की कहानी आंखें नम कर जाती है और अशोक और बालू के साथ साथ हमें भी रोने पर मजबूर कर देती है। बालकृष्ण पेशे से एक नाई होता है और अपने पिता की बाल काटने की दुकान में पड़ी टूटी कुर्सी, जंग लगी कैंची को बदलकर दुकान को नया रंग रूप देना चाहता है पर उसके लिए उसके पास उतने रुपए नहीं होते। उसे लोन भी नहीं मिलता क्यूंकि वो उसूलों का पक्का है और रिश्वत देने के ख़िलाफ़। ग़रीबी के चलते वो अपने बच्चों की फीस तक समय पर नहीं भर पाता जिसकी वजह से बच्चों को स्कूल में शर्मिंदा होना पड़ता है और बालू को इस वजह से अपने बच्चों की नाराज़गी का शिकार होना पड़ता है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसके गांव में सुपर स्टार अशोक कुमार अपनी किसी फ़िल्म की शूटिंग के लिए आ रहे हैं तो उसके मुंह से धोखे से निकल जाता है कि अशोक कुमार बचपन में उसके साथ ही पढ़े थे। ये बात पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फ़ैल जाती है, लोग उससे अशोक कुमार से मिलवाने की उम्मीद लगाने लगते हैं और जब वो नहीं मिला पाता तो हंसी और मज़ाक का पात्र बनता है। एक बड़े आदमी से बचपन की दोस्ती उसके जी का जंजाल बन जाती है। उसके बच्चों को भी लोग ताने मारते हैं। पशुपति ने बालू के किरदार को बड़े ही प्रभावी ढंग से निभाया है। उनके हाव भाव, संवाद, आंखों से छलकती बेबसी दिल को भेद देती है। हंसाते हंसाते फ़िल्म आखिर में रुला जाती है। रजनीकांत और नयनतारा का कैमियो रोल है। आखरी के पंद्रह मिनट में रजनीकांत अपने संवाद और अभिनय से रुला देते हैं। लाजवाब फ़िल्म है, देखिएगा ज़रूर।
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