Saturday, May 9, 2020

फ़िल्म #Thenamesake की समीक्षा

फ़िल्म #Thenamesake की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...09)
यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत आज (08/05/2020) इरफ़ान खान, तब्बू, काल पेन अभिनीत मीरा नायर की क्लासिक फ़िल्म #Thenamesake देखी। झुंपा लाहिड़ी के नॉवेल #Thenamesake के साथ मीरा नायर ने यकीनन न्याय किया है इसमें कोई दो राय नहीं है। 2006 में रिलीज़ हुई ये फ़िल्म अंग्रेज़ी ड्रामा फ़िल्म है जिसमें इरफ़ान और तब्बू को एक कपल के रूप में साथ देखना किसी ट्रीट से कम नहीं। दोनों ने अपने अपने किरदार को बख़ूबी जिया है। वो कहीं भी अभिनय करते नजर नहीं आते बल्कि किरदार की काया में डूबे नज़र आते हैं। दोनों ही बंगाल से नहीं हैं पर उनकी संवाद अदायगी से महसूस नहीं होता कि एक का नाता राजस्थान की माटी से है तो दूसरे का तालुक हैदराबाद से। इस फिल्म के ज़रिए दो पीढ़ियों के बीच के अंतर को बड़ी ही बारीकी से संजीदगी के साथ करीने से उठाया गया है। एक पीढ़ी अशोक (इरफ़ान खान) और आशिमा (तब्बू) की है जो हिंदुस्तान के कलकत्ता से अमेरिका पलायन करते हैं अपने और अपने आने वाले बच्चों के सुनहरे भविष्य के ख़्वाब संजोए और दूसरी पीढ़ी आशिमा और अशोक गांगुली के बच्चों गोगोल (काल पेन) और सोनिया (साहिरा नायर) की है जो अमेरिका में ही जन्मे और बड़े हुए हैं। पहली पीढ़ी की परवरिश में हिंदुस्तान के संस्कार झलकते हैं तो दूसरी पीढ़ी की परवरिश में अमरीकी परिवेश की स्वच्छंदता जहां बच्चे सोलह साल की उम्र तक आते आते अपनी ज़िन्दगी के फैसले ख़ुद लेने लग जाते हैं। तब्बू एक सीन में अपने बेटे से नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहती है "डोंट कॉल अस गाइज" हम तुम्हारे मां बाबा हैं। 
फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है कि अशोक गांगुली जो कि पेशे से प्रोफेसर हैं अपनी पत्नी आशिमा के साथ कलकत्ता से अमेरिका की ओर पलायन बेहतर भविष्य का सपना संजोए करते हैं। आशिमा यहां अपने घर परिवार और परिवेश को बहुत मिस करती है पर ये सोचकर मन मार लेती है कि बच्चों के लिए यहां ज़्यादा संभावनाएं हैं, बेहतर भविष्य है, कैरियर की असीम उचाईयां हैं और ज़िम्मेदार मां बाप होने के नाते हमारा ये फ़र्ज़ है कि हम अपने बच्चों के बारे में सोचें अपने बारे में नहीं। जब अशोक और आशिमा का बेटा होता है तो अशोक उसका नाम अपने चहेते रशियन उपन्यासकार निकोलाई गोगोल के नाम पर अस्थाई तौर पर गोगोल रखता है क्यूंकि अमेरिका में बच्चे के नामकरण के बिना जच्चा बच्चा को अस्पताल से छुट्टी नहीं मिलती। गोगोल का यही नाम आगे भी चलता रहता है। जब वो बड़ा होता है उसके संगी साथी गौग़ल कह कर चिढ़ाते है वो अपना नाम बदलना चाहता है, अपने पिता से कहता है गोगोल आपके फेवरेट ऑथर होंगे मेरे नहीं, मुझे ये नाम नहीं चाहिए।  इरफ़ान बड़े ही प्यार से बेटे को उसके नाम की वजह बताता है यहां तक कि उसके जन्म दिन पर उसे निकोलाई गोगोल की किताब भी पढ़ने को देता है। उस वक़्त गोगोल को पिता की बातें समझ में नहीं आती और जब आती हैं तब तक उसके पिता इस दुनिया से कूच कर गए होते हैं। पिता के जाने के बाद बेटे को उनके ना होने का एहसास होता है, वो अपनी अमेरिकन गर्लफ्रेंड को छोड़ कर एक बंगाली लड़की से शादी करता है। ये फ़िल्म एक तरह से एक बेटे के अपने घर, अपनी जड़ों की ओर लौटने की कहानी है। इस फ़िल्म के ज़रिए डायरेक्टर ने ये भ्रांति भी तोड़ने की भी कोशिश की है कि ज़रूरी नहीं आप अपने समाज के ही लड़के या लड़की से शादी करें तो ही ज़िन्दगी बेहतर होगी। शादी के लिए दो इंसानों का आपसी ताल मेल ज़रूरी है। गोगोल के किरदार को काल पेन ने भी बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निभाया है। इरफ़ान और तब्बू के साथ साथ गोगोल यानि काल पेन की छवि भी अब तक मेरी आंखों में है। ये फ़िल्म बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है जिसे आपको मिस नहीं करना चाहिए। इस फ़िल्म को अपनी व्यू लिस्ट में आप सबसे ऊपर रख सकते हैं। इरफ़ान के दुनियां छोड़कर जाने वाला सीन और उसके बाद तब्बू और गोगोल की ज़िन्दगी में आने वाला बदलाव बड़ा ही मार्मिक है।

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