Thursday, May 7, 2020

फ़िल्म #Deadline की समीक्षा

फ़िल्म #Deadline की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...08) 

 आज (07/05/2020) यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत  इरफ़ान खान और कोंकणा सेन शर्मा अभिनीत फ़िल्म #Deadline देखी जो लगभग पौने दो घंटे की फ़िल्म है जिसे इश्क़, मदहोशी, मिले ना मिले हम जैसी फ़िल्म के स्क्रीन प्ले लेखन या निर्देशन कर चुके तनवीर खान ने निर्देशित की थी। यह फ़िल्म 2006 में रिलीज़ हुई थी। फ़िल्म का कॉन्सेप्ट अच्छा है क्यूंकि ये फ़िल्म अंग्रेज़ी फ़िल्म ट्रप्ड का  बॉलीवुड एडपटेशन है जो ग्रेग इल्स के उपन्यास 24 ऑवर्स पर आधारित थी। पर फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पाई। फ़िल्म एक बच्ची के अपहरण की कहानी है। 
हार्ट सर्जन डॉक्टर वीरेन गोयनका, उनकी पत्नी संजना और आठ नौ वर्षीय बेटी अनिष्का की ज़िन्दगी अच्छी चल रही थी। कुछ ही समय में डॉक्टर साहब का खुद का बहुत बड़ा हार्ट का हॉस्पिटल तैयार होने जा रहा था, मेडिकल एसोसिएशन के द्वारा बड़े अवॉर्ड से उन्हें नवाजा जाना था कि तब ही अचानक उनकी ज़िन्दगी में भूचाल आता है और कुछ ही पलों में सब कुछ बदल जाता है। इधर डॉक्टर साहब अवॉर्ड के लिए दूसरे शहर आते हैं और उधर उनकी इकलौती बेटी का घर के भीतर से अपहरण हो जाता है। अपहरणकर्ता फिरौती में बड़ी रकम मांगता है और मांग बढ़ाता ही जाता है। तीन लोगों की गैंग में से एक व्यक्ति डॉक्टर के पास, एक उसकी पत्नि के पास और तीसरा बेटी के पास होता है जो हर आधे घण्टे में एक दूसरे से स्थिति का जायज़ा लेते रहते हैं। डॉक्टर की बच्ची अस्थमा की मरीज़ होती है जिसे हर चार घंटे में दवा की ज़रूरत होती है और उसे धूल, धुएं  से एलर्जी होती है। इरफ़ान खान ने इस फ़िल्म में अपहरणकर्ता (कृश वैद्य) का किरदार निभाया है। अपहरणकर्ता होने के बावजूद इरफ़ान के भीतर कहीं एक बाप बैठा होता है जो जैसे ही यह सुनता है कि बच्ची को अस्थमा है तुरंत अपने साथी को फोन करता है और बच्ची को धूल, धुएं से बचाने को कहता है, अपने साथी को हिदायत देता है कि वो उसके सामने सिगरेट ना पिए इतना ही नहीं जब संजना बच्ची के गम में कुछ नहीं खाती पीती तो उसे उसकी भी चिंता होती है। वो संजना को बच्ची की ज़रूरी दवाइयों और इन्हेलर के साथ बच्ची के पास भी ले जाता है। बेटी को खो देने का डर क्या और कैसा होता है उस एहसास को वीरेन गोयनका (रजित कपूर) ने भी बखूबी निभाया है। कोंकणा भी उम्दा अभिनेत्री हैं, संजना के किरदार को बेहतरीन ढंग से निभाने में सफल रही है। कृष वैद्य संजना और वीरेन को डराने के लिए ये ज़रूर कहता है कि वो पेशेवर अपहरणकर्ता है पर होता नहीं है। वो क्यूं ऐसा करता है, पैसों की ज़रूरत होने के कारण या डॉक्टर से कोई बदला  लेने के लिए, इन सारे सवालों के जवाब फ़िल्म देखते हुए आपको मिल जाएंगे। फ़िल्म एक पॉजिटिव नोट पर ख़तम होती है और एक बड़ा संदेश देती है कि डॉक्टर और व्यापारियों में फर्क है और अगर ज़िन्दगी देने वाला ही ज़िन्दगी छिन जाने की वजह बन जाए तो लोग डॉक्टर को धरती पर भगवान मानना बन्द कर देंगे। 
 ज़ाकिर हुसैन ने इरफ़ान के साथी कबीर के किरदार में दिल छू लिया है। जब वो लोग अन्नी का अपहरण कर रहे थे तो कबीर साथ में उसकी डॉल भी ले लेता है ताकि बच्ची उससे खेलती रहे उसे ज़्यादा तकलीफ ना हो और आखिर में वही उस बच्ची का बेस्ट फ्रेंड बन जाता है। ये फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है और यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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