फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है कि अंजनी गांव से शहर एक अदद नौकरी की तलाश में दिल्ली अपनी बहन के पास आता है। अंजनी के जीजा जो ख़ुद किसी कंपनी में गार्ड की ड्यूटी करते हैं जैसे तैसे एक ठेकेदार को बोलकर अंजनी को दिल्ली के रायसिना हिल्स पर बंदर भगाने की नौकरी दिलाते हैं। महिंदर जिसकी कई पुश्ते ये काम करती चली आई हैं वो अंजनी को बंदर भगाने की ट्रेनिंग देता है। वो अंजनी को बताता है कि उसे ईईब... ऑले...ऊ ऊ ऊ की आवाज़ निकालकर बंदर को भगाना पड़ेगा। अंजनी बहुत प्रयास करता है पर महिंदर की तरह बंदरों को नहीं भगा पाता। वो नौकरी बचाने के लिए कभी लंगूरों के पोस्टर जगह जगह लगाता है तो कभी ख़ुद ही लंगूर के गेट अप में आ जाता है। इसकी खबर जब ठेकेदार को लगती है तो वो उसे नौकरी से निकालने की धमकी देता है और उसकी शिकायत उसके जीजा से भी करता है तो जीजा शशि अंजनी से कहते हैं: काहे जी काम ठीक से काहे नहीं करते हैं। अंजनी: कर ना रहे हैं। बंदर भगाना पड़ता है, आप भगाए हैं जी कभी। अंजनी लंगूरों भगाने के साथ साथ लोगों का मनोरंजन भी शुरू कर देता है और उसके विडियोज़ वायरल होने लगते हैं जिसके कारण उसकी नौकरी चली जाती है। लाख कोशिशों के बाद भी कोई काम नहीं मिलता। ये विडंबना ही है कि एक तरफ बंदरों को भागने के लिए लोग रखे जाते हैं और दूसरी तरफ उन्हीं बंदरों को हनुमान जी का अवतार मानने वाले कर्मचारी उन्हें रोज़ बुला बुलाकर खाने पीने की चीजें देते हैं और अगर बंदर भगाने वाला व्यक्ति उन्हें ऐसा करने से मना करे तो उसे नौकरी से निकलवाने की धमकी देते हैं। अंजनी उस वक़्त सकते में आ जाता है जब उसे पता चलता है कि उसका दोस्त महिंदर बंदर के हमले से मर गया। हमारे यहां इंसानों की ज़िन्दगी बहुत सस्ती है, गरीब आदमी कीड़े मकोड़े की तरह कब मर जाता है कोई नोटिस ही नहीं करता।
यह फ़िल्म कई गंभीर समस्याओं को सांकेतिक रूप से छूते हुए निकल जाती है जैसे गांवों से शहरों की ओर पलायन, शहर के संघर्ष, बस्तियों में रहने वाले लोगों की समस्या आदि। ख्वाबों के टूटने की टीस लिए अंजनी विक्षिप्त सा हो जाता है।
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