Saturday, May 30, 2020

फ़िल्म #Eeballayooo की समीक्षा

आज (30/05/2020) #Sensiblecinema के तहत प्रतीक वत्स द्वारा निर्देशित फिल्म Eeb Allay Ooo का यूट्यूब पर प्रीमियर देखा। इस फ़िल्म को 2019 में मुंबई फ़िल्म फेस्टिवल में रिलीज़ किया गया था। आप सोच रहे होंगे ये कैसा नाम है, इसका अर्थ क्या है, क्या ये किसी और भाषा की फ़िल्म है, तो इन सारे सवालों का जवाब है नहीं। लगभग पौने दो घंटे की ये फ़िल्म हिंदी भाषा की ही फ़िल्म है। फ़िल्म में मुख्य किरदार अंजनी का रोल निभाया है शार्दुल भारद्वाज ने, अंजनी के जीजा के किरदार में हैं शशि भूषण और दीदी के किरदार में है नूतन सिन्हा। ये फ़िल्म कहानी है उस अंजनी की जो नौकरी कर ढेर सारा पैसा कमाने की चाह लिए अपने गांव से दिल्ली अपनी दीदी के पास आता है पर धीरे धीरे उसका एक एक सपना फूटे घड़े से पानी की तरह रिसता चला जाता है। प्रतीक वत्स की ये फ़िल्म ह्यूमर, ड्रामा और इमोशंस का परफेक्ट ब्लेंड है। ये फ़िल्म हंसाते हुए कभी भावुक कर जाती है तो कभी गरीबी में जीवन जीने को अभिशप्त लोगों की पीड़ा देख गैरबराबरी पर आधारित व्यवस्था के ख़िलाफ़ गुस्सा पैदा करती है। 
फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है कि अंजनी गांव से शहर एक अदद नौकरी की तलाश में दिल्ली अपनी बहन के पास आता है। अंजनी के जीजा जो ख़ुद किसी कंपनी में गार्ड की ड्यूटी करते हैं जैसे तैसे एक ठेकेदार को बोलकर अंजनी को दिल्ली के रायसिना हिल्स पर बंदर भगाने की नौकरी दिलाते हैं। महिंदर जिसकी कई पुश्ते ये काम करती चली आई हैं वो अंजनी को बंदर भगाने की ट्रेनिंग देता है। वो अंजनी को बताता है कि उसे ईईब... ऑले...ऊ ऊ ऊ की आवाज़ निकालकर बंदर को भगाना पड़ेगा। अंजनी बहुत प्रयास करता है पर महिंदर की तरह बंदरों को नहीं भगा पाता। वो नौकरी बचाने के लिए कभी लंगूरों के पोस्टर जगह जगह लगाता है तो कभी ख़ुद ही लंगूर के गेट अप में आ जाता है। इसकी खबर जब ठेकेदार को लगती है तो वो उसे नौकरी से निकालने की धमकी देता है और उसकी शिकायत उसके जीजा से भी करता है तो जीजा शशि अंजनी से कहते हैं: काहे जी काम ठीक से काहे नहीं करते हैं। अंजनी: कर ना रहे हैं। बंदर भगाना पड़ता है, आप भगाए हैं जी कभी। अंजनी लंगूरों भगाने के साथ साथ लोगों का मनोरंजन भी शुरू कर देता है और उसके विडियोज़ वायरल होने लगते हैं जिसके कारण उसकी नौकरी चली जाती है। लाख कोशिशों के बाद भी कोई काम नहीं मिलता। ये विडंबना ही है कि एक तरफ बंदरों को भागने के लिए लोग रखे जाते हैं और दूसरी तरफ उन्हीं बंदरों को हनुमान जी का अवतार मानने वाले कर्मचारी उन्हें रोज़ बुला बुलाकर खाने पीने की चीजें देते हैं और अगर बंदर भगाने वाला व्यक्ति उन्हें ऐसा करने से मना करे तो उसे नौकरी से निकलवाने की धमकी देते हैं। अंजनी उस वक़्त सकते में आ जाता है जब उसे पता चलता है कि उसका दोस्त महिंदर बंदर के हमले से मर गया। हमारे यहां इंसानों की ज़िन्दगी बहुत सस्ती है, गरीब आदमी कीड़े मकोड़े की तरह कब मर जाता है कोई नोटिस ही नहीं करता।
यह फ़िल्म कई गंभीर समस्याओं को सांकेतिक रूप से छूते हुए निकल जाती है जैसे गांवों से शहरों की ओर पलायन, शहर के संघर्ष, बस्तियों में रहने वाले लोगों की समस्या आदि। ख्वाबों के टूटने की टीस लिए अंजनी विक्षिप्त सा हो जाता है। 
अंजनी के किरदार को शार्दुल ने बख़ूबी निभाया है। नूतन सिन्हा और शशि भूषण जी का अभिनय भी ज़बरदस्त है। ये सारे किरदार हमें अपने आस पास के ही मालूम पड़ते हैं। टीम एफटीआईआई ने बहुत अच्छा काम किया है, तो एक बार पुनः सारी टीम को इस फ़िल्म के लिए साधुवाद।

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