फ़िल्म #Dday की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...10)
आज (12/05/2020) यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत इरफ़ान खान की फिल्म #Dday देखी है जिसमें इरफ़ान के साथ साथ मुख्य भूमिका में हैं ऋषी कपूर, अर्जुन रामपाल और हुमा कुरैशी। 2013 में रिलीज़ हुई #Dday एक ऐक्शन थ्रिलर फिल्म है जिसका निर्देशन किया है निखिल आडवाणी ने। ये फ़िल्म आधारित है डी कंपनी के ही एक मोस्ट वांटेड अंडर वर्ल्ड माफिया पर जिसको पकड़कर भारत लाने के मिशन का हिस्सा होते हैं रॉ एजेंट वली खान (इरफ़ान खान) जो पिछले नौ सालों से अपने मिशन को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान में नाई बनकर पड़े रहते हैं।
वली खान रॉ के एजेंट हैं जिन्हें भारत के इंटेलिजेंस हेड अश्विनी राव के द्वारा गोल्डमैन को भारत लाने के मिशन पर पाकिस्तान भेजा जाता है। वली खान अपने मिशन को अंजाम देने के लिए नौ साल तक गुमनामी के साए में एक नाई बनकर पाकिस्तान में पड़े रहते हैं, इसी दौरान उन्हें नफीसा (श्रीस्वरा) से पाकिस्तान में मोहब्बत हो जाती है और वो नफीसा और अपने पांच वर्षीय बेटे कबीर के साथ अभावों में भी हंसी खुशी जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं कि तभी उन्हें मस्ज़िद में नमाज़ अता करते हुए पता चलता है कि इक़बाल सेठ कारांची में अपने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए अपनी सुरक्षा प्रोटोकॉल को तोड़ेगा और वही सबसे अच्छा मौका होगा मिशन को अंजाम देने के लिए। वली रॉ के हेड अश्विनी राव को फोन लगाकर इस सूचना की जानकारी देता है। भारत से वली की मदद के लिए दो और एजेंट आते हैं रुद्र प्रताप (अर्जुन रामपाल) और जोया रहमान (हुमा कुरैशी) और एक एजेंट पहले से इकबाल सेठ के यहां तैनात था। चारो अपनी जान की बाजी लगा कर मिशन को अंजाम देते हैं पर मिशन फेल हो जाता है क्यूंकि वली इक़बाल को ज़िंदा गिरफ्त में लेना चाहता था और रुद्र उसे वहीं ढेर कर देना चाहता था। इधर मिशन को अंजाम देने से पहले वली अपने बीवी बच्चे को सुरक्षित लंदन भेज देना चाहता था ताकि उन पर कोई आंच न आए पर खुदा को कुछ और ही मंजूर था यूरोप की सारी फ्लाइट्स किसी आपदा के कारण रद्द हो जाती हैं और कबीर और नफीसा लंदन नहीं जा पाते और पाकिस्तानी सेना के गिरफ्त में आ जाते हैं। क्या वली अपने बीवी बच्चों को बचा पाएगा और खुद ज़िंदा रह रह पाएगा, इक़बाल को ज़िंदा अपने मुल्क भारत को सौंपने का वली का ख़्वाब पूरा होगा पाएगा, इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए आपको ये फ़िल्म देखनी होगी तब ही आपको मज़ा आएगा।
इस फ़िल्म के ज़रिए उन रॉ या दूसरी खुफिया एजेंसियों के एजेंट के दर्द को भी दिखाया गया है जो अपने देश की खातिर सालों साल दूसरे मुल्क में गुमनामी के साए में जीते रहते हैं अपनी जान की फ़िकर किए बग़ैर पर अगर कहीं मिशन फेल हो जाए तो वहीं खूफिया एजेंसी उन एजेंट्स को पहचानने से मना कर देती हैं और साफ साफ पल्ला झाड़ लेती हैं, उनकी सालों की कुर्बानी ज़ाया हो जाती है, और इस दौरान अगर बीवी बच्चे दुश्मन के हाथों लग गए तो और आफत। सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है। ऋषी कपूर ने इक़बाल के किरदार को प्रभावी ढंग से निभाने की भरसक कोशिश की है, अर्जुन रामपाल के एंग्री यंग मैन वाला किरदार भी अच्छा है। वली के किरदार के विविध आयामों को इरफ़ान खान ने बेहद खूबसूरत ढंग से निभाया हैं। बच्चे और बीवी से ना मिलपाने की कसक, हर वक़्त डर के उस साए में जीने की बेचैनी कि कहीं नफीसा और कबीर को कुछ हो ना जाए इन सभी भावों को इरफ़ान ने बड़े ही सादगी से निभाया है। सचमुच इरफ़ान अभिनय के लिए ही बने थे।
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