Wednesday, May 20, 2020

फ़िल्म #Hachiadogstale की समीक्षा

फ़िल्म #Hachiadogstale की समीक्षा 

आज (20/05/2020) #Sensiblecinema के तहत रिचर्ड गियर और  जोन एलेन अभिनीत फ़िल्म हॅची ए डॉग्स टेल देखी जो 1987 में बनी एक जापानी फ़िल्म हचिको मॉनोगतारी का रीमेक है जिसे निर्देशित किया है लेसे हल्लस्ट्रोम ने। इस फ़िल्म को सजेस्ट करने के लिए आशीष कोतवाल सर का तहे दिल से शुक्रिया। फ़िल्म यकीनन ज़बरदस्त है। जितनी स्ट्रॉन्ग इस फ़िल्म की स्टोरी लाइन है उतना ही ज़बरदस्त रिचर्ड गियर और जोन  एलेन का अभिनय और हॉलस्ट्रोम का निर्देशन। सोच रही थी अभिनेताओं से अभिनय कराना फिर भी आसान है पर एक डॉग से निर्देशक ने कैसे अभिनय कराया होगा? फ़िल्म की कहानी बड़ी ही मार्मिक है, ये कहानी है उस हची (कुत्ते) की जो दस वर्षों तक रोज़ सुबह शाम रेल्वे स्टेशन पर अपने मालिक का इंतज़ार करते करते एक दिन वहीं दम तोड़ देता है। 
फ़िल्म की कहानी कुछ यूं है कि रॉन्नी को एक दिन अपने स्कूल में माई हीरो पर कुछ बोलना होता है और तब वो अपने नाना पार्कर विल्सन के कुत्ते हचीको की कहानी सुनाता है। फ्लैशबैक के ज़रिए कहानी यादों के गलियारों से गुजरती है। पार्कर विल्सन म्यूज़िक के प्रोफ़ेसर होते हैं, एक दिन रेलवे स्टेशन पर उन्हें एक कुत्ता मिलता है, वो उसके मालिक को ढूंढने की बहुत तलाश करते हैं पर जब कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता तो उसे अपने घर ले आते हैं और अपनी पत्नि केट (जोन एलेन) से छुपाकर उसे नीचे के कमरे में छोड़कर फिर अपने कमरे में आते हैं। वो छोटा सा पप्पी किसी म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट को दबा देता है फिर चुपके से कमरे से निकलकर ऊपर आ जाता है और केट का पांव चाटने लगता है, वो डर जाती है तब पार्कर उसे पूरी घटना बताते हैं और वादा करते हैं कि सुबह होते ही वो उसे किसी को दे आएंगे। पार्कर कई कोशिशें करते हैं कि कोई उस पप्पी को रख ले पर कोई तैयार नहीं होता तो वो फिर उसे घर ले आते हैं और घर से बाहर एक स्टोर रूम में उसके रहने का इंतज़ाम करते हैं। उस कुत्ते से धीरे धीरे पार्कर को गहरा लगाव हो जाता है और कुत्ता भी पार्कर से बच्चों की तरह हिल मिल जाता है। वो रोज़ पार्कर को रेलवे स्टेशन छोड़ने और लेने जाता था। एक दिन पार्कर को अपनी क्लास में ही अटैक आ जाता है और वो वहीं दम तोड़ देते हैं, हचि (डॉग) अपने मालिक का बेसब्री से इंतजार करता है, हर दिन, आंधी, पानी, ठंड सहकर। हाचि की निगाहें रेलवे स्टेशन के दरवाज़े को तकती रहती हैं। ये सिलसिला दस वर्षों तक यूं ही चलता रहता है। कितने ही बसंत और पतझड़ हाची ने अपने मालिक के इंतज़ार में उस रेलवे स्टेशन के बाहर गुज़ार दिए। पार्कर की बेटी हाची को अपने साथ भी ले जाती है पर वो मौका पाकर फिर भागकर रेलवे स्टेशन चला आता है अपने मालिक के इंतजार में।
फ़िल्म में एक कपल के रूप में रिचर्ड गियर और जोन एलेन की जोड़ी बहुत अच्छी लगी है, दोनों का ऑन स्क्रीन बॉन्ड ज़बरदस्त लगा। फ़िल्म में एक सीन है जिसमें डायरेक्टर उस रेलवे स्टेशन के पास बने सर्किल के ऊपर बैठे हाची के पीछे लगे पेड़ पर कई बार बसंत और पतझड़ दिखा कर ये संकेत करती है कि हैची को अपने मालिक का इंतज़ार करते हुए वर्षों बीत गए। एक सीन में कैमरा शॉट और बहुत ज़बरदस्त ढंग से लिया गया है जहां हॅचि जब अपने मालिक के घर के गार्डन में उल्टा लेटता है तो उसकी आई व्यू से उसकी मालकिन केट को भी उल्टा करके दिखाया जाता है। रिचर्ड और हची के बीच ज़बरदस्त बॉन्डिंग दिखाई गई है। ये फ़िल्म अपने मालिक के प्रति एक कुत्ते के अटूट प्रेम और वफादारी की कहानी है। कुत्ते का वो भरोसा और आस कि एक दिन उसका मालिक ज़रूर आएगा मरते दम तक नहीं टूटती और अपने मालिक के इंतज़ार में एक दिन वो खुद आंखें मींच लेता है हमेशा हमेशा के लिए पर एक मिसाल कायम कर जाता है।

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