फ़िल्म #Lifeinametro की समीक्षा (यादों में इरफ़ान सीरीज...16)
यादों में इरफ़ान सीरीज के तहत और मित्र आदित्य के आग्रह पर कल रात (20/05/2020) पुनः 2007 में रिलीज़ हुई अनुराग बासु की फ़िल्म लाइफ इन ए मेट्रो देखी, इरफ़ान के अभिनय को ध्यान से देखने के लिहाज़ से। हालाकि इसमें इरफ़ान खान का रोल सपोर्टिंग एक्टर का है पर उन्हें जितना भी स्क्रीन टाइम मिला उन्होंने अपने अभिनय से मोंटी के किरदार में जान डाल दी। इस म्यूज़िकल ड्रामा फ़िल्म में अभिनेताओं का हुजूम है यानि एक साथ आपको धर्मेन्द्र जी, नफीसा अली, शिल्पा शेट्टी, के के मेनन, शर्मन जोशी, कंगना राणावत, इरफ़ान खान, कोंकणा सेन शर्मा, शाईनी आहूजा देखने को मिल जाएंगे। फ़िल्म में एक साथ कई कहानियां चलती हैं, हर किरदार कुछ पाने की तलाश में है। किसी को सुकून चाहिए, किसी को अपने ब्रेक अप से उबरने के लिए किसी का साथ, कोई अपनी नीरस हो चुकी ज़िन्दगी में फिर से रंग भरने की कोशिश कर रहा है, किसी को सच्चे प्रेम की तलाश है, किसी को तरक्की चाहिए तो कोई शादी के लिए एक अच्छे पार्टनर की तलाश में है, सबकी ज़िन्दगी में कुछ ना कुछ कमी सी है। किसी के मन में गुबार है, किसी के दिल में मलाल, कोई अपने आखरी वक़्त में नींद से जागता है तो कोई सुकून की तलाश में मृग मारिचिका के पीछे भागता है। मेट्रो सिटी मुंबई में हर इंसान भीड़ में होते हुए भी भीतर ही भीतर निरा तन्हा है। खोखले पड़ते रिश्तों, छीजते जज्बातों, मौक़ा परस्त लोगों के बीच एक सच्चा साथी पाने की चाहत में दिलों के टूटने की कहानी है लाइफ इन ए मेट्रो। हर कहानी आपस में कहीं ना कहीं जुड़ी है। एक चीज़ हर कहानी में कॉमन है, वो है हर किसी की ज़िन्दगी में घर कर गई गहरी उदासी जिसे दूर करने के लिए सभी को एक अदद खुशी और सुकूं की तलाश है। शिखा (शिल्पा शेट्टी) वो खुशी आकाश (शाईनी आहूजा) में तलाशती है।शिखा का पति रजत कपूर (के के मेनन) सुकून के दो पल अपने ऑफिस में ही काम करने वाली नेहा (कंगना राणावत) के साथ तलाशता है। अमोल (धर्मेन्द्र) अपनी बची खुची ज़िन्दगी शिवानी (नफीसा अली) के साथ सुकून से इंडिया में गुजारना चाहता है। शिखा की बहन श्रुति (कोंकणा सेन शर्मा) तीसवें साल में चल रही हैं उन्हें एक अच्छे जीवन साथी की तलाश है, राहुल को बड़ा आदमी बनना है, वो ज़िन्दगी को मॉर्निंग वॉक नहीं एक रेस मानता है और आगे बढ़ने के लिए हर जायज़ और नाजायज कदम उठाने से उसे कोई गुरेज नहीं। मोंटी (इरफ़ान खान) को भी एक अच्छी जीवन संगिनी की तलाश है और शायद इसलिए ज़िन्दगी बार बार उस श्रुति से मिलवाती है। वो जब श्रुति से पूछता है कि आखिर उसने उसे रिजेक्ट क्यूं किया था तो श्रुति कहती है क्यूंकि उसकी निगाहें गलत जगह पर थीं तो मोंटी बड़ा ही सच्चा और सीधा सा जवाब देता है, वो कहता है में 38 का हो गया हूं और आज तक किसी लड़की को हाथ तक नहीं लगाया, तुम्हारे शरीर की ओर मेरा आकर्षण स्वाभाविक था, इसमें गलत क्या है यार? इरफ़ान जिस तरीके से ये बात बोलते हैं उसमें भी एक सलीका नजर आता है, उनके मुंह से कहीं भी वो संवाद ओछा नहीं लगता सुनने में। इरफ़ान का कॉमिक सेंस भी काबिले तारीफ़ है। जब श्रुति को ये एहसास होता है कि दरअसल वो मोंटी को चाहने लगी है और आज उसकी शादी होने वाली है किसी और से तो वो भागती हुई उसके पास पहुंचती है और घोड़ा चढ़े, दूल्हा बने मोंटी से अपने प्यार का इजहार करती है तो मोंटी कहता है इतनी देर क्यों लगा दी बोलने में, अब तो पेटीकोट और ब्लाऊज भी किसी और के नाप का बन गया है तो श्रुति गुस्से में वहां से निकल जाती है और मोंटी घोड़े पे सवार ही श्रुति के पीछे निकल पड़ता है। ये फ़िल्म ज़िन्दगी की कई सच्चाइयों से हमें रूबरू कराती है, साथ ही ये एहसास भी दिलाती है कि ज़िन्दगी में छोटी छोटी खुशियां कितनी मायने रखती हैं। मानसिक संतुष्टि चीज़ों और पैसों में नहीं सच्चे रिश्तों में बसती है। इस फिल्म के सारे गाने लाजवाब और सिचुएशनल हैं।
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